Lekhika Ranchi

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उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद



झुनिया सास के पीछे-पीछे घर में चली गयी। उधर भोला ने जाकर दोनों बैलों को खूँटों से खोला और हाँकता हुआ घर चला, जैसे किसी नेवते में जाकर पूरियों के बदले जूते पड़े हों -- अब करो खेती और बजाओ बंसी। मेरा अपमान करना चाहते हैं सब, न जाने कब का बैर निकाल रहे हैं, नहीं, ऐसी लड़की को कौन भला आदमी अपने घर में रखेगा। सब के सब बेसरम हो गये हैं। लौंडे का कहीं ब्याह न होता था इसी से। और इस राँड़ झुनिया की ढिठाई देखो कि आकर मेरे सामने खड़ी हो गयी। दूसरी लड़की होती, तो मुँह न दिखाती। आँख का पानी मर गया है। सब के सब दुष्ट और मूरख भी हैं। समझते हैं, झुनिया अब हमारी हो गयी। यह नहीं समझते जो अपने बाप के घर न रही, वह किसी के घर नहीं रहेगी। समय ख़राब है, नहीं बीच बाज़ार में इस चुड़ैल धनिया के झोंटे पकड़कर घसीटता। मुझे कितनी गालियाँ देती थी। फिर उसने दोनों बैलों को देखा, कितने तैयार हैं। अच्छी जोड़ी है। जहाँ चाहूँ, सौ रुपए में बेच सकता हूँ। मेरे अस्सी रुपए खरे हो जायँगे। अभी वह गाँव के बाहर भी न निकला था कि पीछे से दातादीन, पटेश्वरी, शोभा और दस-बीस आदमी और दौड़े आते दिखायी दिये। भोला का लहू सर्द हो गया। अब फ़ौजदरी हुई; बैल भी छिन जायँगे, मार भी पड़ेगी। वह रुक गया कमर कसकर। मरना ही है तो लड़कर मरेगा। दातादीन ने समीप आकर कहा -- यह तुमने क्या अनर्थ किया भोला ऐं! उसके बैल खोल लाये, वह कुछ बोला नहीं, इसीसे सेर हो गये। सब लोग अपने-अपने काम में लगे थे, किसी को ख़बर भी न हुई। होरी ने ज़रा-सा इशारा कर दिया होता, तो तुम्हारा एक-एक बाल चुन जाता। भला चाहते हो, तो ले चलो बैल, ज़रा भी भलमंसी नहीं है तुममें।

पटेश्वरी बोले -- यह उसके सीधेपन का फल है। तुम्हारे रुपये उस पर आते हैं, तो जाकर दिवानी में दावा करो, डिग्री कराओ। बैल खोल लाने का तुम्हें क्या अख़्तियार है? अभी फ़ौजदारी में दावा कर दे तो बँधे-बँधे फिरो।
भोला ने दबकर कहा -- तो लाला साहब, हम कुछ ज़बरदस्ती थोड़े ही खोल लाये। होरी ने ख़ुद दिये।
पटेश्वरी ने शोभा से कहा -- तुम बैलों को लौटा दो शोभा। किसान अपने बैल ख़ुशी से देगा, तो इन्हें हल में जोतेगा। भोला बैलों के सामने खड़ा हो गया। हमारे रुपए दिलवा दो हमें बैलों को लेकर क्या करना है। हम बैल लिये जाते हैं, अपने रुपए के लिए दावा करो और नहीं तो मारकर गिरा दिये जाओगे। रुपए दिये थे नगद तुमने? एक कुलिच्छनी गाय बेचारे के सिर मढ़ दी और अब उसके बैल खोले लिये जाते हो। '
भोला बैलों के सामने से न हटा। खड़ा रहा गुमसुम, दृढ़, मानो मारकर ही हटेगा। पटवारी से दलील करके वह कैसे पेश पाता? दातादीन ने एक क़दम आगे बढ़कर अपनी झुकी कमर को सीधा करके ललकारा -- तुम सब खड़े ताकते क्या हो, मार के भगा दो इसको। हमारे गाँव से बैल खोल ले जाएगा।
बंशी बलिष्ठ युवक था। उसने भोला को ज़ोर से धक्का दिया। भोला सँभल न सका, गिर पड़ा। उठना चाहता था कि बंशी ने फिर एक घूँसा दिया। होरी दौड़ता हुआ आ रहा था। भोला ने उसकी ओर दस क़दम बढ़कर पूछा -- ईमान से कहना होरी महतो, मैंने बैल ज़बरदस्ती खोल लिये?
दातादीन ने इसका भावार्थ किया -- यह कहते हैं कि होरी ने अपने ख़ुशी से बैल मुझे दे दिये। हमी को उल्लू बनाते हैं। होरी ने सकुचाते हुए कहा -- यह मुझसे कहने लगे या तो झुनिया को घर से निकाल दो, या मेरे रुपए दो, नहीं तो मैं बैल खोल ले जाऊँगा। मैंने कहा, मैं बहु को तो न निकालूँगा, न मेरे पास रुपए हैं; अगर तुम्हारा धरम कहे, तो बैल खोल लो। बस, मैंने इनके धरम पर छोड़ दिया और इन्होंने बैल खोल लिये।
पटेश्वरी ने मुँह लटकाकर कहा -- जब तुमने धरम पर छोड़ दिया, तब कोई की ज़बरदस्ती। उसके धरम ने कहा, लिये जाता है। जाओ भैया, बैल तुम्हारे हैं।
दातादीन ने समर्थन किया -- हाँ, जब धरम की बात आ गयी, तो कोई क्या कहे। सब के सब होरी को तिरस्कार की आँखों से देखते परास्त होकर लौट पड़े और विजयी भोला शान से गर्दन उठाये बैलों को ले चला।

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